मैं यहाँ अपने कैपुचीनो के इंतज़ार में हूँ।
समय लगने वाला है।
बात ये है कि मैं करेरी की इकलौती कॉफ़ी शॉप में बैठा हूँ। मेरे सामने छह लड़के बैठे हैं, बातें कर रहे हैं, और Jameson की बॉटल से पेग पर पेग बनते जा रहे हैं।
कॉफ़ी में समय इसलिए लगेगा क्योंकि मशीन को ऑन करके रेडी करना होगा। दोपहर के ढाई बजने वाले हैं, और मशीन को ऑन करने से पहले सारे पंखे बंद करने होंगे। पंखे बंद करने से पहले हमारे जो भाई Jameson का आनंद ले रहे हैं, उन्हें उठना पड़ेगा।
अभी तो समय है।
पर मुझे कोई जल्दी भी नहीं है।
मैं करेरी पहली बार आया हूँ, और ये जगह मुझे बहुत पसंद आ रही है। शांति है यहाँ पर सच कहूँ तो घर की बहुत याद आ रही है। पिछले कुछ हफ्तों से लग रहा है कि ज़िंदगी फास्ट-फॉरवर्ड में चल रही है।
यहाँ, इस कॉफ़ी के इंतज़ार में, एक ठहराव सा महसूस हो रहा है। मेरे सामने एक और भाई कॉफ़ी का इंतज़ार कर रहे हैं और मैं अब लेटकर ये लिख रहा हूँ।
कॉफ़ी शॉप के बरिस्ता/ओनर अब djembe बजा रहे हैं।
Jameson भाइयों की चर्चा इस मुद्दे पर चल रही है कि इलेक्ट्रिक गाड़ी शहर में भी लेना फायदेमंद है या नहीं।
शायद अब बातचीत अपने अंतिम मोड़ पर है क्युकि पेग एक के बाद एक गटके जा रहे हैं।
वो भैया जिन्हें मेरी कॉफ़ी बनानी थी, अब सामने अपने खेत पर काम करने चले गए हैं।
मुझे हमेशा से क्लासिकल गिटार की आवाज़ बहुत पसंद रही है, और यहाँ एक गिटार कोने में पड़ी है।
पंखे बंद करने वाले भैया अब खेत से वापस आ गए हैं, और Jameson भाइयों की बातें अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं।
भैया मेरी ओर देखकर कहते हैं, “मशीन बस दस मिनट में ऑन हो जाएगी। कोई जल्दी तो नहीं?”
मैं जवाब देता हूँ—“बिलकुल नहीं।”